सावन मास की पावन कथा
(विशेषकर शिवभक्तों के लिए एक प्रेरणादायक कथा)
भूमिका:
सावन (श्रावण) मास हिन्दू पंचांग के अनुसार वर्ष का पवित्रतम महीना माना जाता है। यह माह भगवान शिव की उपासना का विशेष समय है। इस मास में भगवान शिव को जल अर्पण करने, व्रत रखने और रुद्राभिषेक करने से विशेष पुण्य प्राप्त होता है। अब सुनिए सावन मास से जुड़ी एक प्राचीन पौराणिक कथा:
सावन मास की पौराणिक कथा:
प्राचीन काल की बात है। एक बार देवी पार्वती ने भगवान शंकर से प्रश्न किया,
"प्रभु! ऐसा कौन-सा व्रत या मास है, जिससे स्त्रियों को अखंड सौभाग्य और भक्तों को मनवांछित फल की प्राप्ति होती है?"
भगवान शिव मुस्कराए और बोले:
"हे पार्वती! श्रावण मास का व्रत अत्यंत पुण्यदायक होता है। जो भक्त इस मास में श्रद्धा और भक्ति से मेरा पूजन करते हैं, उन्हें जीवन में सुख, समृद्धि, आरोग्य और मुक्ति प्राप्त होती है।"
कथा आगे ऐसे है:
प्राचीन काल में एक निर्धन ब्राह्मण और उसकी पत्नी रहते थे। वे बहुत ही भक्तिपूर्वक जीवन बिताते थे, किंतु संतान न होने के कारण दुखी रहते थे। एक दिन ब्राह्मणी ने अपनी सहेलियों से श्रावण मास में शिवजी के व्रत और जलाभिषेक की महिमा सुनी।
उसने सावन भर सोमवार का व्रत किया, शिव मंदिर में जाकर प्रतिदिन जल चढ़ाया, बेलपत्र, दूध और धतूरा अर्पण किया। सच्चे मन से शिव की आराधना की। अंत में आखिरी सोमवार को उसने कन्या का व्रत रूप में पूजन किया और शिव से प्रार्थना की:
"हे भोलेनाथ! मेरे जीवन में भी कृपा करें।"
शिव प्रसन्न हुए और आकाशवाणी हुई:
"हे व्रतधारी! तुम्हारे व्रत, भक्ति और सेवा भाव से मैं प्रसन्न हूँ। तुम्हें योग्य संतान की प्राप्ति होगी और जीवन भर सुख, शांति और सौभाग्य का वास रहेगा।"
कुछ समय बाद ब्राह्मणी को पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। वह परिवार सुखी और समृद्ध हो गया। तभी से यह मान्यता बनी कि श्रावण मास में सोमवार के व्रत रखने और शिवलिंग पर जल चढ़ाने से भगवान शिव प्रसन्न होते हैं।
सावन मास के विशेष नियम और परंपराएं:
प्रत्येक सोमवार को व्रत रखा जाता है (श्रावण सोमवार व्रत)
शिवलिंग पर जल, दूध, बेलपत्र, धतूरा, भांग चढ़ाई जाती है
रुद्राभिषेक और शिव चालीसा का पाठ किया जाता है
कांवड़ यात्रा में भक्त दूर-दूर से गंगाजल लाकर शिव को अर्पित करते हैं
भक्ति गीत, भजन और कथा पाठ का आयोजन होता है
मांस, मदिरा, प्याज-लहसुन आदि का त्याग किया जाता है
सावन मास का आध्यात्मिक महत्व:
यह मास आत्मा की शुद्धि और भक्ति साधना का काल होता है।
शिव ही समस्त ब्रह्मांड के मूल हैं — और इस मास में उनका स्मरण हमारे भीतर की नकारात्मकता को नष्ट करता है।
कहते हैं, सावन में श्रद्धा और भक्ति से शिव का नाम लेने मात्र से समस्त पाप धुल जाते हैं।
सावन मास केवल पूजा का नहीं, बल्कि आत्म-चिंतन, संयम और शिव को समर्पित होने का समय है। इस मास में शिव के "ॐ नमः शिवाय" मंत्र का जप, व्रत, कथा और सेवा से जीवन में शांति, प्रेम और सफलता अवश्य प्राप्त होती है।