महाराणा प्रताप (1540–1597) मेवाड़ के सिसोदिया राजवंश के वीर योद्धा और शासक थे, जिन्हें मुग़ल साम्राज्य के विरुद्ध अपनी अदम्य वीरता और स्वाभिमान के लिए जाना जाता है। उनका जीवन संघर्ष, त्याग, और देशभक्ति की मिसाल है।
प्रारंभिक जीवन
जन्म: 9 मई 1540 को कुम्भलगढ़ दुर्ग (राजस्थान) में।
पिता: महाराणा उदयसिंह II (मेवाड़ के शासक)।
माता: महारानी जयवंता बाई।
शिक्षा: युद्ध कला, घुड़सवारी, और रणनीति में निपुण। बचपन से ही उनमें स्वाभिमान और स्वतंत्रता की भावना कूट-कूट कर भरी थी।
शासन और संघर्ष
1572 में गद्दी संभाली: पिता की मृत्यु के बाद महाराणा प्रताप मेवाड़ के शासक बने।
मुग़लों से टकराव: अकबर ने मेवाड़ को अपने अधीन करने के लिए कई बार प्रस्ताव भेजे, लेकिन महाराणा प्रताप ने आत्मसमर्पण से इनकार कर दिया।
हल्दीघाटी का युद्ध (1576):
विरोधी: अकबर की सेना (मानसिंह और आसफ खाँ के नेतृत्व में)।
परिणाम: भयंकर युद्ध हुआ, लेकिन मेवाड़ की सेना संख्या और संसाधनों में कम होने के बावजूद लड़ी। महाराणा प्रताप ने अपने विश्वासपात्र घोड़े चेतक की मदद से युद्धक्षेत्र छोड़ा।
महत्व: यह युद्ध भारतीय इतिहास में वीरता और राष्ट्रप्रेम का प्रतीक बन गया।
जीवन के अंतिम वर्ष
जंगलों में संघर्ष: हल्दीघाटी के बाद महाराणा प्रताप ने जंगलों में रहकर गुरिल्ला युद्ध की रणनीति से मुग़लों को चुनौती दी।
चित्तौड़ पुनर्ग्रहण का प्रयास: उन्होंने धीरे-धीरे मेवाड़ के कई क्षेत्रों को वापस जीता, लेकिन चित्तौड़ दुर्ग पर पुनः अधिकार नहीं कर सके।
निधन: 19 जनवरी 1597 को चावंड (राजस्थान) में घायल होने और लंबे संघर्ष के बाद उनका निधन हो गया।
विरासत और महत्व
स्वाभिमान के प्रतीक: महाराणा प्रताप ने कभी भी मुग़लों की अधीनता स्वीकार नहीं की।
लोककथाओं में स्थान: उनकी वीरता और उनके घोड़े चेतक की कहानियाँ लोकगीतों और कविताओं में प्रसिद्ध हैं।
राजस्थान की गौरवगाथा: आज भी उन्हें “मेवाड़ का सूरज” कहा जाता है।
महत्वपूर्ण तथ्य
घोड़ा: चेतक (नीले रंग का घोड़ा) उनकी वीरता का साथी था।
तलवार: उनकी तलवार का वजन 25 किलो था।
ऊंचाई: इतिहासकारों के अनुसार, वे 7 फीट 5 इंच लंबे थे।
मृत्यु के समय उनका नारा: “जब तक चित्तौड़ स्वतंत्र नहीं होगा, मेवाड़ अधूरा है।”
महाराणा प्रताप का जीवन भारतीय इतिहास में स्वतंत्रता और स्वाभिमान की अमर गाथा है।